मुंबई की माहिम और वरली सीट पर ठाकरे Vs ठाकरे

पानीपत के ऐतिहासिक तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली से मराठों के बुरी तरह पराजित होने के बाद महाराष्ट्र में ‘पानीपत झाला’ (पानीपत हो गया) एक मुहावरा बन गया। किसी की बुरी हार होने पर इस मुहावरे का उपयोग आज भी होता है।

इस विधानसभा चुनाव में भी मुंबई की 36 सीटों पर तीन ‘सेनाएं’ आमने-सामने हैं। देखना है कि इनमें से किसका ‘पानीपत’ होता है, और कौन ‘मुंबई का किंग’ बनकर उभरता है।

बालासाहेब के निधन के बाद बदल गई राजनीतिक परिस्थिति

मुंबई में शिवसेना की स्थापना के बाद से ही इसके संस्थापक बालासाहेब ठाकरे को मुंबई का बेताज बादशाह कहा जाता था। सरकार किसी की भी हो, लेकिन ठाकरे की मर्जी के विरुद्ध मुंबई में पत्ता भी नहीं हिलता था। ठीक 12 वर्ष पहले 17 नवंबर, 2012 को बालासाहेब के निधन के बाद परिस्थितियां धीरे-धीरे बदलती गईं।

दस साल में बदल गई शिवसेना की राजनीतिक शक्ल 

2014 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा के साथ शिवसेना का गठबंधन पहली बार टूटा, और चुनाव परिणाम आने पर मुंबई में ही शिवसेना को भाजपा से पिछड़ना पड़ा। तब भाजपा को मुंबई में 15 और शिवसेना को 14 सीटें ही मिल सकीं।

सिर्फ एक सीट की यही कमी शिवसेना को पूरे पांच वर्ष कचोटती रही, और 2019 में भाजपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने के बावजूद चुनाव परिणाम आते ही उद्धव ठाकरे अपनी 56 सीटों के साथ कांग्रेस-राकांपा से मिलकर मुख्यमंत्री बन गए।

इससे उनका मुख्यमंत्री बनने का सपना तो पूरा हो गया, लेकिन ढाई साल बाद ही बालासाहेब की बनाई शिवसेना ही उनके हाथ से निकल गई। न उनके हाथ में पार्टी का नाम रहा, न चुनाव निशान।

11 विधानसभा सीटों पर दोनों शिवसेनाओं के उम्मीदवार आमने-सामने 

अब 2024 के विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) का मुकाबला चुनाव आयोग द्वारा एकनाथ शिंदे को दी गई ‘शिवसेना’ से हो रहा है। मुंबई की 11 विधानसभा सीटों पर इस बार इन दोनों शिवसेनाओं के उम्मीदवार तो आमने-सामने हैं ही, उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने भी इन्हीं सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं।

शुरुआत में माना जा रहा था कि राज ठाकरे का भाजपा-शिवसेना से छुपा गठबंधन हो सकता है। वह वोट कटवा की भूमिका निभाकर उद्धव ठाकरे को नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं लग रहा है। उन्होंने मुंबई की ज्यादातर सीटों पर न सिर्फ मजबूत उम्मीदवार खड़े किए हैं, बल्कि उनके प्रचार में पूरा दमखम भी दिखा रहे हैं।

महिम पर सीट पर शिंदे गुट ने बढ़ाई राज ठाकरे की सिरदर्दी

दरअसल मुंबई में शिंदे और राज ठाकरे के बीच बात बिगड़ने का मुख्य कारण बनी माहिम सीट। यहां से इस बार राज ठाकरे के पुत्र अमित ठाकरे चुनाव लड़ रहे हैं। राज ठाकरे चाहते थे कि इस सीट पर शिवसेना और भाजपा दोनों उन्हें समर्थन दें।

भाजपा ने तो अपना समर्थन घोषित भी कर दिया। लेकिन इस सीट पर एकनाथ शिंदे अपने तीन बार के विधायक सदा सरवणकर का टिकट पहले ही घोषित कर चुके थे। अमित का टिकट घोषित होने के बाद शिंदे बहुत प्रयास करके भी सदा सरवणकर की नामवापसी नहीं करवा सके।

इससे नाराज राज ठाकरे ने सदा सरवणकर से मिलने से भी इंकार कर दिया था। यही कारण है कि मुंबई की 11 सीटों पर शिवसेना(यूबीटी), शिवसेना (शिंदे) एवं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना में त्रिकोणीय लड़ाई दिखाई दे रही है।

भतीजे आदित्य के खिलाफ चाचा ने खड़ा किया उम्मीदवार 

यहां तक कि मुंबई की जिन दो सीटों वरली एवं माहिम में ठाकरे परिवार के सदस्य खुद चुनाव लड़ रहे हैं, वहां भी दोनों के परिवार एक-दूसरे के प्रति कोई नरमी नहीं बरत रहे हैं। 2019 में वरली सीट से पहली बार ठाकरे परिवार के सदस्य आदित्य ठाकरे द्वारा चुनाव लड़ने पर राज ठाकरे ने वहां अपना उम्मीदवार न देकर भतीजे आदित्य का समर्थन किया था।

लेकिन इस बार उनके पुत्र अमित के सामने उद्धव ने अपना तगड़ा उम्मीदवार उतार दिया है। इसलिए इस बार राज ठाकरे ने भी आदित्य के खिलाफ अपने करीबी संदीप देशपांडे को टिकट दिया है। इसलिए इन दोनों सीटों पर भी लड़ाई तगड़ी दिखाई दे रही है।

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