महापंचायत के दौरान सलीम शेरवानी और आबिद रजा का रुख स्पष्ट होने की उम्मीद है। इसके बाद जिले के लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक समीकरण भी बनेंगे और बिगड़ेंगे। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सेकुलर फ्रंट की सहसवान में होने वाली बैठक संभल के अलावा आंवला और बदायूं लोकसभा सीटों के चुनाव परिणामों को प्रभावित करेगी।
यादव-मुस्लिम बहुल्य सहसवान विधानसभा क्षेत्र की सीमाएं संभल के गुन्नौर विधानसभा क्षेत्र से भी लगती हैं। गुन्नौर विधानसभा क्षेत्र बदायूं लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। 1993 से सहसवान विधानसभा सीट पर सपा का कब्जा है। इस बीच 2007 में एक बार डीपी यादव भी विधायक चुने जा चुके हैं।
सहसवान से विधायक चुने गए थे मुलायम सिंह
जिले में यादव-मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट कर सपा का आधार मजबूत करने के लिए मुलायम सिंह यादव भी 1996 में सहसवान विधानसभा सीट से विधायक चुने जा चुके हैं। इसके बाद 2007 में मुलायम सिंह यादव ने गुन्नौर सीट से रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की। 2004 में संभल लोकसभा सीट से मुलायम सिंह ने अपने भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव को चुनाव लड़ाया। इस इलाके को मुलायम सिंह का गढ़ कहा जाता था।
उन्होंने भी रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की। यादव-मुस्लिम बाहुल्य बदायूं और संभल बेल्ट में सपा की पकड़ काफी मजबूत रही है। यादव-मुस्लिम गठजोड़ के बल पर ही सलीम शेरवानी 1996, 1998, 1999 और 2004 के सपा के टिकट पर सांसद चुने गए।
2009 में टिकट कटने के बाद शेरवानी ने बगावत कर कांग्रेस का दामन थाम सपा को चुनौती देने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो सके। इस बार चुनाव से पहले जिस तरह शेरवानी और आबिद रजा ने टिकट न मिलने के कारण मोर्चा खोला है उससे सपा के वोट बैंक में बिखराव की संभावना बढ़ती जा रही है।
आबिद का सपा के प्रति सख्त रुख
सपा के राष्ट्रीय सचिव पद से इस्तीफा देने के बाद पूर्व विधायक आबिद रजा ही बागी रुख अपनाए हुए हैं। मंगलवार को सलीम शेरवानी भले लखनऊ में सपा मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात करने पहुंचे थे, लेकिन आबिद रजा बुधवार को होने वाली सेकुलर महापंचायत की तैयारियों में जुटे थे।
मंगलवार को आबिद ने कई इलाकों में जनसंपर्क कर लोगों से महापंचायत में आने का आह्वान किया। सहसवान में महापंचायत की चल रहीं तैयारियां को भी देखा। उन्होंने कार्यक्रम स्थल नारायण भवन में मीडिया कर्मियों से भी बात की। इस दौरान सपा को लेकर सख्त रुख अपनाया। कहा कि मुसलमानों को नफरत की बुनियाद पर वोट नहीं करना चाहिए। अब यादव-मुस्लिम फैक्टर को तरजीह नहीं मिल रही। पीडीए से ए और एम-वाई से एम गायब हो चुका है। उन्होंने कहा कि अब सियासी फैसले का दौर है। महापंचायत में सियासी फैसला हो जाएगा।
लोकसभा चुनाव 2009
धर्मेंद्र यादव- सपा- 2,33,744
डीपी यादव-बसपा- 2,01,202
सलीम शेरवानी-कांग्रेस- 1,93,834
लोकसभा चुनाव 2014
धर्मेंद्र यादव- सपा- 4,98,378
वागीश पाठक-भाजपा- 3,32,031
अकमल खान-बसपा- 1,56,973
लोकसभा चुनाव 2019
डॉ. संघमित्रा मौर्य-भाजपा-511,352
धर्मेंद्र यादव- सपा- 4,92,898
सलीम शेरवानी-कांग्रेस- 51,947