नई दिल्लीः हवाई क्षेत्र के उपयोग में लचीलेपन से विमानन कंपनियों को सालाना 1,000 करोड़ रुपए की बचत होगी। इससे उड़ान के समय, ईंधन के उपयोग और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलती है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने शनिवार को जारी विमानन क्षेत्र की समीक्षा में यह भी कहा कि नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने इस साल 18 दिसंबर तक रिकॉर्ड 1,562 वाणिज्यिक पायलट लाइसेंस जारी किए हैं।
मंत्रालय ने कहा कि हवाई अड्डों पर भीड़भाड़ की समस्या के समाधान के लिए कई यात्री संपर्क बिंदुओं पर क्षमता बढ़ाने के लिए विभिन्न हवाई अड्डों पर उपलब्ध टर्मिनल बुनियादी ढांचों को दोबारा बनाकर अतिरिक्त जगह बनाई गई है। इस बीच, मंत्रालय ने कहा कि पहले लगभग 40 प्रतिशत हवाई क्षेत्र नागरिक उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं था, जिससे विमान अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए लंबे मार्गों को अपनाते थे। विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारतीय वायु सेना राष्ट्रीय हवाई क्षेत्र के 30 प्रतिशत हिस्से को नियंत्रित करती है। इसमें से 30 प्रतिशत को हवाई क्षेत्र के लचीले उपयोग के तहत ऊपरी हवाई क्षेत्र के रूप में जारी किया गया है।
मंत्रालय ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत के हिस्से के रूप में भारतीय वायुसेना नागरिक उपयोग के लिए हवाई क्षेत्र के इन हिस्सों को छोड़ने पर सहमत हो गई है, साथ ही 129 सशर्त मार्गों की घोषणा की गई है। बयान में कहा गया, “इससे उड़ान के समय, ईंधन की महत्वपूर्ण बचत होगी और कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी। एयरलाइंस को प्रति वर्ष लगभग 1,000 करोड़ रुपए की बचत होगी। अगस्त, 2020 से अब तक कुल बचत 640.7 करोड़ रुपए और कार्बन उत्सर्जन में कुल कमी 1.37 लाख टन है।”
विज्ञप्ति में कहा गया, “इस साल 19 नवंबर को भारत में एयरलाइंस से 4,56,910 घरेलू यात्रियों ने यात्रा की। कोविड-19 महामारी की चपेट में आने के बाद से यह एक दिन में सबसे अधिक लोगों ने हवाई यात्रा की थी। यह पूर्व-कोविड स्तर से 7.4 प्रतिशत अधिक है।”