होली भारत के सबसे प्रमुख हिंदू त्योहारों में से एक है। इसे रंगों का त्योहार करते हैं, क्योंकि होली के मौके पर रंगों के साथ खेला जाता है। लोग अपने परिजनों, दोस्तों और करीबियों को रंग लगाते हैं, एक दूसरे से गले लगकर होली की शुभकामनाएं देते हैं। साथ ही लजीज पकवान खाते हैं। हालांकि पूरे भारत में होली मनाने के अलग अलग तरीके हैं। होली मनाने की परंपरा और रिवाज में भी कुछ-कुछ अंतर पाया जाता है। होली का जिक्र होता है तो सबसे पहले मथुरा बरसाना की होली याद आती है। श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा-बरसाना की होली विश्व प्रसिद्ध है, जिसमें शामिल होने के लिए विदेशों से लोग आते हैं। हालांकि यहां होली का जश्न अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। जैसे कृष्ण की नगरी में लट्ठमार होली बहुत मशहूर है। लट्ठमार, नाम से ही पता चलता है कि इसमें लाठी से मारा जाता है। अब सवाल है कि त्योहार को मारपीट कर क्यों और कैसे मनाया जा सकता है? आइए जानते हैं कि लट्ठमार होली मनाने की क्या परंपरा है, इसे कहां और कब मनाते हैं और लट्ठमार होली का इतिहास और महत्व क्या है।
कहां खेली जाती है लट्ठमार होली
लट्ठमार होली उत्तर प्रदेश के मथुरा के आसपास के शहरों बरसाना और नंदगांव में खेली जाती है। हर साल देश विदेश से लोग बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं और लट्ठमार होली का आनंद लेते हैं। पूरे भारत में ये एकमात्र ऐसी रस्म वाला त्यौहार होता है।
लट्ठमार होली की परंपरा
लट्ठमार होली मनाने की खास परंपरा है। होली वाले दिन बरसाने की महिलाएं पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं। महिलाएं उन्हीं पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं, जो उन पर रंग डालते हैं। पुरुष भी खुशी-खुशी लाठियों को सहन करते हैं। यह उत्सव पूरा एक सप्ताह तक चलता है, जिसे स्थानीय लोग जोश और उत्साह से मनाते हैं।
क्यों मनाते हैं लट्ठमार होली ?
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण राधा जी और गोपियों संग होली खेलते थे। कृष्ण जी मथुरा से 42 किलोमीटर दूर राधा की जन्मस्थली बरसाना में आकर होली खेलते थे। तभी से लट्ठमार होली का चलन हो गया।
महत्व
आज भी हर साल नंदगांव से पुरुष बरसाना पहुंचते हैं, जहां उनका स्वागत बरसाना की महिलाएं लाठियों से करती हैं। महिलाएं पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं और पुरुष ढाल से बचने की कोशिश करते हैं। यह उत्सव बरसाना के राधा रानी मंदिर के विशाल परिसर में मनाया जाता है।