डाक विभाग में एक वर्ष तक इन खातों की जांच चली और तीन मई को रिपोर्ट सौंपी गई थी। इसमें सामने आया कि गबन के मामले में प्रारंभिक रूप से 33 डाककर्मी मिले थे। इसी आधार पर 33 लोगों की कार्य भूमिका और सेवा नियमावली के तहत जिम्मेदारियों की जांच की गई।
प्रधान डाकघर समेत दो उप डाकघरों में निष्क्रिय खातों से गबन की रकम अब 76 लाख से बढ़कर 2.38 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। छह महीने तक चली जांच में तीनों डाकघरों के 5500 खातों को खंगाला गया। गबन में पांच डाक कर्मियों की मुख्य भूमिका पाई गई है, जबकि 28 डाककर्मी जिम्मेदारी के प्रति लापरवाही बरतने के आरोपी पाए गए हैं। इन सभी पर आरोप तय कर दिया गए हैं, जबकि मुख्य आरोपी पांचों डाककर्मियों की जांच अभी भी चल रही है।
जानकारी के मुताबिक, मुख्य डाकघर (गोलघर), कुनराघाट और विश्वविद्यालय डाकघर में निष्क्रिय खातों से लंबे समय से रुपयों की निकासी की जा रही थी। इन डाकघरों से क्रमश: 113 करोड़, 75 करोड़ और 50 करोड़ रुपये का गबन सामने आया है। जांच टीम के सूत्रों के मुताबिक जांच में पांच डाक कर्मियों की भूमिका मुख्य मिली है।
पहला मामला डाक परिक्षेत्र, गोरखपुर के पोस्ट मास्टर जनरल ने प्रधान डाकघर में पकड़ा था। जांच-पड़ताल में सामने आया कि एक कर्मचारी के पिता की पेंशन का खाता कुनराघाट डाकघर में था। उनका निधन 2018 में हो गया। कर्मचारी ने अपने पिता के पेंशन खाता संख्या-3473656309 को 12 मई 2020 को प्रधान डाकघर गोलघर में स्थानांतरित कराया। आरोप है कि उसके बाद तत्कालीन पोस्टमास्टर व सिस्टम मैनेजर के सहयोग से डाक कर्मियों ने खाते को सक्रिय कराकर उसमें अपना नाम एड (जुड़वा) कराया।
इतना ही नहीं, खाते पर एटीएम कार्ड भी जारी कर दिया गया। डाककर्मी हर माह विड्राल फार्म व एटीएम के माध्यम से पेंशन की रकम खाते से उड़ाता रहा। मामला पकड़ में आने के बाद अफसरों ने डाक कर्मी से पूछताछ भी की लेकिन वह अपनी करतूत से मुकरता रहा। इसी के बाद मामले की प्रारंभिक जांच में यह मामला खुला। तब पता चला कि प्रधान डाकघर के अलावा दो अन्य उप डाकघरों में भी सैकड़ों निष्क्रिय खाते से तकरीबन 92 लाख रुपये की निकासी की गई थी।
प्रारंभिक जांच में यह रकम 96 लाख रुपये थी। इसी आधार पर सभी आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा में कैंट में केस दर्ज कराया गया। इधर, विभागीय जांच भी बैठा दी गई। आंशिक रूप से दोषी पाए गए 28 डाककर्मियों की सजा तय कर दी गई है।
विजिलेंस की सौंपी रिपोर्ट के आधार पर सभी से 38 लाख रुपये की वसूली की जाएगी। उनके मूल वेतन को कम करने के साथ ही इंक्रीमेंट भी रोकी गई है। जबकि, पांच डाक कर्मियों से दो करोड़ रुपये जमा करवाने का निर्णय लिया गया है और उनके खिलाफ विभागीय स्तर पर अब सजा तय की जाएगी।
ऐसे चली जांच तब पकड़ में आए आरोपी
डाक विभाग में एक वर्ष तक इन खातों की जांच चली और तीन मई को रिपोर्ट सौंपी गई थी। इसमें सामने आया कि गबन के मामले में प्रारंभिक रूप से 33 डाककर्मी मिले थे। इसी आधार पर 33 लोगों की कार्य भूमिका और सेवा नियमावली के तहत जिम्मेदारियों की जांच की गई। इस दौरान 5500 खातों के एक लाख से अधिक लेन-देन की जांच हुई। सामने आया कि पांच लोगों की मिलीभगत से कुल ढाई करोड़ रुपये की रकम गायब की गई।
इसमें अन्य 28 लोगों ने अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से नहीं निभाई। सूत्रों ने बताया कि मुख्य पांच डाककर्मियों ने अपनी आईडी से इन खातों से रुपयों की निकासी की। हालांंकि, जांच में यह भी सामने आया है कि इनके पास निकासी के लिए डाककर्मी ही बिल, बाउचर और खातों की डिटेल लेकर जाते थे।
कुछ अपनी आईडी देकर बन गए आरोपी
दोषी कर्मचारियों में कइयों ने खुद को निर्दोष बताया है। उनका कहना है कि उन्होंने अपनी आईडी दूसरे कर्मचारी को दे दी और उसी आईडी से रुपयों का हेरफेर किया गया। लेकिन, विभागीय आईडी गोपनीय होती है, उसे दूसरे को देना भी गलत है। लिहाजा, ऐसे लोगों को भी दोषी बनाया गया है।
प्रवर डाक अधीक्षक मनीष कुमार ने कहा कि गबन को लेकर चल रही जांच में 33 डाककर्मियों में 28 आंशिक रूप से दोषी पाए गए हैं। इन सभी के लिए सजा का निर्धारण कर दिया गया है। अभी पांच मुख्य आरोपी की जांच चल रही है। अगर जरूरत पड़ी तो दूसरी एजेंसियों से भी जांच करवाई जाएगी। तीन डाकघरों में लगभग ढाई करोड़ रुपये के गबन का मामला सामने आया है।