राज्य बनने के बाद पांचवां लोकसभा चुनाव हो रहा है। इससे पहले लोकसभा हो या विधानसभा हर चुनावी पिच पर राजनीतिक दल गैरसैंण के मुद्दे को कभी बैक तो कभी फ्रंट फुट पर खेलते रहे हैं, लेकिन इस बार ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने के बाद पहली बार गैरसैंण का मुद्दा चुनावी पिच से बाहर पवेलियन में है।
केवल यूकेडी ही गैरसैंण के सवाल को उठा रही है। राज्य आंदोलनकारी महेश जुयाल कहते हैं, यूकेडी द्वारा 1980 में यहां बीरचंद्र सिंह गढ़वाली नगर गैरसैंण को राजधानी प्रस्तावित की गई। 90 के दशक में चले उत्तराखंड आंदोलन में गैरसैंण को ही राजधानी माना।
चिह्नित राज्य आंदोलनकारी समिति के केंद्रीय अध्यक्ष हरिकृष्ण भट्ट कहते हैं, जिस भावना से राज्य बना उसके केंद्र में गैरसैंण राजधानी रहा। लेकिन, राज्य बनने के बाद कई राजनीतिक दलों ने पहाड़ चढ़ने की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई और राजधानी के मसले को आयोगों के कुएं में धकेल दिया।
टेंट से सदन और सत्र से ग्रीष्मकालीन राजधानी तक चला सियासी ड्राॅमा
वर्ष 2012 में तत्कालीन विधायक डाॅ. अनुसूया प्रसाद मैखुरी, तब सांसद रहे सतपाल महाराज, मुख्यमंत्री रहे विजय बहुगुणा ने गैरसैंण में विधानसभा भवन बनाने की बात कह डाली। पूर्व सीएम हरीश रावत ने इसे आगे बढ़ाया, लेकिन राजधानी के लिए हजारों करोड़ की धनराशि की डिमांड तत्कालीन केंद्र सरकार से कर डाली। विधान भवन और विधायक आवास बनने के बाद यहां चंद दिनों के सत्र होते रहे। 2017 के बाद सीएम बने त्रिवेंद्र सिंह ने भी इसमें एक कदम और आगे बढ़ाया और ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दी। राज्य आंदोलनकारी दिनेश जोशी, एमएस नेगी का कहना है कि बदला कुछ नहीं।
24 सालों में नहीं हुईं सुविधाएं विकसित
गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के मध्य स्थित गैरसैंण में राज्य बनने के 24 साल बाद भी सुविधाएं विकसित नहीं हो पाईं। गैरसैंण स्थायी राजधानी निर्माण संघर्ष समिति के अध्यक्ष नारायण सिंह बिष्ट का कहना है कि गैरसैंण में राजधानी तो दूर एसडीएम और तहसीलदार तक स्थायी नहीं। कर्णप्रयाग के अधिकारियों के पास प्रभार है। गढ़वाल से गैरसैंण को जोड़ने वाली सड़क डबल लेन नहीं हो पाई। पानी के लिए आज भी लोग टैंकर पर आश्रित हैं। अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सकों के अभाव में लोग पलायन कर रहे है। राजधानी के लिए आंदोलन किए तो लोगों ने मुकदमे झेले।
जिले की मांग अटकी, मंडल की घोषणा लटकी
गैरसैंण को जिला बनाने की मांग लंबे समय से है। यहां के लोगों को जिला मुख्यालय को जाने के लिए दो दिन लगते हैं, लेकिन जिला नहीं बना। यहां तक पूर्व में मंडल की घोषणा हुई, लेकिन सरकार बदलने के चलते मंडल की घोषणा भी लटक गई।