1 फरवरी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अंतरिम बजट पेश करने जा रही हैं। लोकसभा चुनाव के बाद नई सरकार का गठन होगा जिसके बाद ही बाकी बचे हुए महीनों के लिए जुलाई में बजट पेश होगा।
बजट सरकार की आय और खर्चों का लेखा-जोखा है। ऐसे में हर दूसरे नागरिक के लिए यह जानना और भी जरूरी हो जाता है कि सरकार बजट कैसे तैयार करती है। इस आर्टिकल में बजट बनाने की प्रक्रिया को ही आसान भाषा में समझाने की कोशिश कर रहे हैं।
बजट प्रक्रिया
कब से शुरू होती है प्रक्रिया
बजट की यह प्रक्रिया सितंबर से ही शुरू हो जाती है। सभी मंत्रालयों, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को वित्त मंत्रालय की ओर से एक सर्कुलर जारी किया जाता है। सभी से अगले वित्त वर्ष के लिए सुझाव लिए जाते हैं। इसके बाद इन सुझावों की समीक्षा की जाती है। समीक्षा के बाद मंत्रालय फंड आवंटन को लेकर निर्णय लेता है।
कई बार विवाद की स्थिति भी पैदा होती है ऐसे में किसी भी अंतिम निर्णय से पहले केंद्रीय मंत्रीमंडल या प्रधानमंत्री से इस विषय पर सलाह ली जाती है।
बैठकों का दौर
फंड आवंटन के फैसले के बाद अक्टूबर महीने में प्री-बजट बैठकों को दौर शुरू होता है। यह बैठकें नवंबर आधे महीने तक चलती हैं। यह बैठकें सेक्रेटरी (एक्सपेंडिचर) की अगुवाई में होती हैं।
बजट से जुड़े अनुमानों को अंतिम रूप
जनवरी में बजट से जुड़े अनुमानों को अंतिम रूप देने का कार्य किया जाता है। दरअसल, जनवरी के पहले हफ्ते में सांख्यिकी मंत्रालयचालू वित्त वर्ष के जीडीपी का पहला अग्रिम अनुमान जारी करता है।
राजकोषीय घाटा लक्ष्य और टैक्स कलेक्शन के लिए क निश्चित नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ रेट तय की जाती है। यह नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ रेट वित्त मंत्रालय अगले वित्त वर्ष के लिए तय करता है।
बजट सत्र के पहले दिन वित्त मंत्री द्वारा बजट का प्रस्ताव पेश किया जाता है। इस प्रस्ताव के साथ ही अलग-अलग योजनाओं के लिए फंड आवंटन की जानकारी दी जाती है। इसके बाद इस पर लोकसभा में चर्चा होती है। लोकसभा के बाद यह राज्यसभा में पास करने की प्रक्रिया पर आता है।
अंतिम चरण
बजट प्रक्रिया के आखिरी चरण में बजट को लागू किया जाता है। इस बजट के प्रस्ताव अप्रैल की पहली तारीख से लागू होते हैं।