इजरायली सेना का लेबनान में पैदल दाखिल होना और हिजबुल्लाह से भिड़ना आसान नहीं है। इजरायली सेना के पूर्व अधिकारियों का मानना है कि अगर इजरायल दक्षिणी लेबनान में घुसता है तो उसे हिजबुल्लाह की उन्नत एंटी टैंक क्षमताओं का सामना करना पड़ेगा।
हिजबुल्लाह के पास हजारों आरपीजी हैं। इनका इस्तेमाल वो आईडीएफ कवच और ट्रॉफी रक्षा प्रणाली व मिसाइलों को तबाह करने में करेगा।
हिजबुल्लाह के पास कोर्नेट मिसाइलों का जखीरा
हिजबुल्लाह के पास रूस की सबसे बेहतरीन एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल कोर्नेट का भारी जखीरा है। पिछले साल हिजबुल्लाह ने अपने सैन्य अभ्यास के दौरान थरल्लाह सिस्टम को भी दुनिया के सामने पेश किया था। इस सिस्टम में दो कोर्नेट मिसाइलों का इस्तेमाल होता है। खास बात यह है कि सिस्टम एक सेकंड से भी कम समय में दोनों मिसाइलों को दागने में सक्षम है।
हिजबुल्लाह के पास सुरंगों क बड़ा नेटवर्क
विशेषज्ञों का मानना है कि लेबनान में दाखिल होने पर इजरायली सेना को आईईडी और माइंस का भी सामना करना होगा। हिजबुल्लाह ने दक्षिणी लेबनान में बड़ी संख्या में माइंस बिछा रखी हैं। वहीं हमास की तर्ज पर दक्षिणी लेबनान में हिजबुल्लाह ने सुरंगों का बड़ा नेटवर्क बना रखा है। इस नेटवर्क के माध्यम से हिजबुल्लाह बड़ा हमला करने की ताकत रखता है।
एक लाख लड़ाकों से कैसे निपटेगा इजरायल?
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अभी तक की लड़ाई में इजरायली को जरूर बढ़त हासिल है। मगर हिजबुल्लाह की फौज वैसी की वैसी है। इजरायल ने सिर्फ उसके कमांडरों और हथियार ठिकानों को तबाह किया है, लेकिन करीब एक लाख लड़ाके अभी भी संगठन में है। हिजबुल्लाह की पैदल कमांड को इजरायल अभी कोई बड़ा नुकसान नहीं पहुंचा पाया है। ग्राउंड ऑपरेशन के दौरान इजरायली सैनिकों को हिजबुल्लाह के इन्हीं लड़ाकों का सामना करना होगा।
लड़ाकों के पास युद्ध का अनुभव
हिजबुल्लाह के लड़ाके हमास की तरह हैं। दरअसल, हिजबुल्लाह के लड़ाकों के पास युद्ध का अनुभव है। 2013 में हिजबुल्लाह ने बसर अल-असद की सरकार के समर्थन में अपने लड़ाकों को लड़ने सीरिया भेजा था। यहां हिजबुल्लाह के लगभग सात हजार लड़ाकों ने छह साल तक आईएसआई के खिलाफ जंग लड़ी। साल 2019 में हिजबुल्लाह ने अपने लड़ाकों को वापस बुला लिया था।
जखीरे में उन्नत अल्मास मिसाइलें भी
हिजबुल्लाह के पास अल्मास मिसाइलें भी हैं। यह मिसाइलें उन्नत किस्म के टैंकों को तबाह कर सकती हैं। इनका निर्माण ईरान ने किया है। खास बात यह है कि द्वितीय लेबनान युद्ध के दौरान इजरायली ने स्पाइक मिसाइलों को लेबनान में ही छोड़ दिया था। इसके बाद ईरान ने रिवर्स-इंजीनियरिंग के माध्यम से अल्मास मिसाइलों को तैयार किया है।