कानपुर में मुख कैंसर के रोगियों का सर्जरी के बाद हैलट में नया चेहरा बना दिया जाएगा। इसके लिए तीन तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इससे रोगी के मुंह का अंदरूनी और बाहरी भाग सामान्य की तरह रहेगा। इसके साथ ही प्रत्यारोपित किए गए हिस्से में नर्व, नसें भी रहेंगी और दिखने में यह खराब भी नहीं लगेगा।
अभी तक मांस का टुकड़ा ऊपर से चिपका दिया जाता है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. संजय काला ने बताया कि विभाग में अलग से प्लास्टिक सर्जरी यूनिट बना दी गई है। सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रेम शंकर ने बताया कि पहले मुख कैंसर के रोगियों को पीएमएमसी फ्लैप लगाया जाता था। इसके लिए छाती का मांस निकाला जाता था।
इसके अलावा माथे का मांस फ्लैप निकालकर सर्जरी की जाती थी। इसमें मांस की चिप्पी भर होती थी। लेकिन अब जांघ का मांस निकालकर एएलटी फ्लैप लगाया जाता है। इसमें गाल की तरह ही चर्बी भी होती है। इसके साथ ही नर्व, नसें, टिश्यू वगैरह रहते हैं। मोटा होने की वजह से यह गाल की तरह ही लगता है। अगर किसी कैंसर रोगी की गाल की पर्त पतली है।
पैर की फैबुल हड्डी को भी प्रत्यारोपित किया जाता है
तब उसके लिए बाएं हाथ से रेडियल फ्लैप लिया जाता है। अगर किसी रोगी का जबड़ा काटना पड़ता है तो उसके लिए पैर से फैबुला फ्लैप लिया जाता है। मांस के साथ पैर की फैबुल हड्डी को भी प्रत्यारोपित किया जाता है। रिकॉन्स्ट्रिक्टिव सर्जरी के एक सप्ताह के बाद रोगी की रेडियोथैरेपी शुरू कर दी जाती है।