भगवान गणेश की पूजा के समय करें ये सरल उपाय

वैदिक पंचांग के अनुसार, आज यानी 18 नवंबर को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी है। यह पर्व हर वर्ष मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही विशेष कार्य में सिद्धि पाने के लिए साधक गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखते हैं। इस व्रत को करने से धन संबंधी परेशानी दूर हो जाती है। ज्योतिष शास्त्र में गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर विशेष उपाय (Ganadhipa Sankashti Chaturthi Upay) करने का भी विधान है। इन उपायों को करने से आय और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही मनचाही मुराद पूरी होती है। अगर आप भी भगवान गणेश की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर पूजा के समय ये उपाय अवश्य करें।

उपाय

भगवान गणेश को पीला रंग अति प्रिय है। अतः गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर पूजा के समय भगवान गणेश को पीले रंग का पुष्प अवश्य ही अर्पित करें। इस समय ॐ गं गणपतये नमो नम: श्री सिद्धि विनायक नमो नम: अष्टविनायक नमो नम: गणपती बाप्पा मोरया || मंत्र का पाठ करें।
गणपति बप्पा को मोदक भी अति प्रिय है। कहते हैं कि भगवान गणेश को मोदक अर्पित करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही जीवन में खुशियों का आगमन होता है। इसके लिए पूजा के समय भगवान गणेश को श्रद्धा अनुसार मोदक अवश्य अर्पित करें।
अगर आप आर्थिक तंगी से निजात पाना चाहते हैं, तो गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर गन्ने के रस से भगवान गणेश का अभिषेक करें। इस उपाय को करने से धन संबंधी परेशानी दूर हो जाती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
भगवान गणेश को दूर्वा चढाने से मनचाही मुराद पूरी होती है। अगर आप विशेष कार्य में सिद्धि पाना चाहते हैं, तो गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर पूजा के समय भगवान गणेश को दूर्वा अर्पित करें। आप दूर्वा विषम संख्या में अर्पित करें।

गणोश मंत्र

ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥


दन्ताभये चक्रवरौ दधानं, कराग्रगं स्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जयालिङ्गितमाब्धि पुत्र्या-लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे॥

ॐ नमो ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्लीं क्लीं श्रीं लक्ष्मी मम गृहे धनं देही चिन्तां दूरं करोति स्वाहा ॥

ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।

गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः ।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌ ॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌ ।

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