
इंदौर में डिजिटल दुनिया में वाणिज्यिक व मध्यस्ता कानूनों की जटिलता व नवाचार विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। ये आयोजन मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय व प्रदेश राज्य अकादमी द्वारा ब्रिलिएंट कन्वेंशन सेंटर में किया गया।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि अब समय बदला है। न्याय की देवी की आंखों की पट्टी खोलने का सौभाग्य सुप्रीम कोर्ट से प्राप्त हुआ। न्याय की देवी खुली आंखों से न्याय कर सकती हैं। हमारे यहां तो न्याय की प्राचीन परंपरा है। इस संगोष्टी के लिए राजा विक्रमादित्य के प्रदेश को चुना गया है। यह हमारे लिए गर्व की बात है। मध्य प्रदेश में भी न्याय परंपरा पुरातन है।
उन्होंने अयोध्या फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि जिस विषय को लेकर समाज में अलग-अलग प्रकार की धाराएं बहती थीं। ज्वलंत विषय को टालने की परंपरा थी। उसे टालने के बजाए सीना ठोक कर फैसला देना और उस फैसले को लागू कराकर भारत के प्रजातंत्र का मान दुनिया में बढ़ाया गया। अयोध्या जैसा फैसला सुप्रीम कोर्ट ने करके दिखाया। यह हम सबका सौभाग्य है।
उन्होंने कहा कि अब डिजिटल युग है। एआई जैसे माध्यम हैं, लेकिन न्याय की आत्मा वही है। वह बदलने वाली नहीं है। समानता, पारदर्शिता, विनम्रता व समय पर न्याय की प्राप्ति की दरकार हमेशा रहेगी।
न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार माहेश्वरी, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति अरविन्द कुमार भारत विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। वक्ता गणों ने कहा कि एआई के कारण कई राह आसान हुई है, लेकिन कानूनी सबूतों में एआई का उपयोग खतरनाक साबित हो सकता है। डिजिटल सबूतों में यह जांचना चुनौतिपूर्ण होगा कि वे वास्तविक है या फेंक है। कई अपराधी अब ऑनलाइन अपराध कर रहे हैं। वे भौतिक साक्ष्य नहीं छोड़ते, लेकिन उन्हें कड़ी सजा दिलाने के लिए वास्तविक डिजिटल सबूत आवश्यक है।