टी वी व समाचार पत्रों के माध्यम से प्राप्त समाचारों के अनुसार भारत और कनाडा के बीच रिश्ते लगातार खराब हो रहे है स्थिति इतनी खराब है कि हाल ही में कनाडा ने भारतीय दूतावास से एक अधिकारी को निष्कासित कर दिया थी वहीं इसकी जवाबी कार्यवाही में भारत ने भी कनाडा दूतावास के एक अधिकारी को निष्कासित कर दिया। लेकिन इन बिगड़ते रिश्तों को जल्द से जल्द कैसे सुधारा जाय यह प्रश्न आज हार एक की जबान पर है ।
गौरतलब है कि जब दो देशों की सरकारों में खटास आ जाती हैं, खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। भारत और कनाडा के बीच रिश्ते इतने कटु हो गए हैं, कि वहां बसे भारतीय घबराए हुए हैं। वे भारतीय पासपोर्ट धारक हैं परंतु नौकरी या व्यापार कनाडा में कर रहे हैं। हालांकि भारत और कनाडा के बीच बड़े पैमाने पर व्यापार होता है। काफी संख्या में भारतीय वहां रहकर व्यापार या नौकरियां करते हैं। बहुत से भारतीय छात्र वहां पढ़ने के लिए जाते हैं , बताया जाता है कि उनकी संख्या लाखों में है । ये भी कहा जाता है कि कनाडा ऐसा देश भी है जहां भारतीय खासकर पंजाबी सिख समुदाय बड़ी सियासी ताकत भी बनकर उभरा है।
अब कनाडा में बार-बार उन्हें सफाई देनी होगी कि वे कनाडा के प्रति वफादार हैं। पुलिस और अन्य सरकारी महकमे उन्हें तंग करेंगे। हालांकि भारत में शायद ही कोई नागरिक बसा हो लेकिन कनाडा में साढ़े चार लाख से ऊपर भारतीय पीआर लेकर बसे हुए हैं। इनमें से पौने दो लाख लोग कनाडा की नागरिकता ले चुके हैं। अब उनके सामने एक संकट आ खड़ा है, कि वे कनाडा सरकार के भेदभाव और उपेक्षा का सामना कैसे करेंगे?
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— Ek Sandesh (@EkSandesh236986) September 20, 2023
दोनों देशों के बीच व्यापर की बात करें तो भारत और कनाडा के बीच अब तक के व्यापारिक संबंध अच्छे रहे हैं। भारत कनाडा का 10वां ट्रेडिंग पार्टनर रहा है। दोनों देशों के बीच आयात-निर्यात लगभग बराबर के हैं।वित्त वर्ष 2023 में भारत ने कनाडा को 4.11 अरब डॉलर यानी करीब 34 हजार करोड़ रुपये का सामान निर्यात किया। वहीं भारत का कनाडा से इंपोर्ट 4.17 अरब डॉलर यानी 35 हजार करोड़ से कुछ कम रहा है। दोनों देशों के बीच वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 7 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। वहीं वित्त वर्ष 2022-23 में 8.16 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। हालांकि ट्रेड को लेकर कनाडा की निर्भरता भारत पर अधिक है।
भारत कनाडा को हीरे-जवाहरात, बहूमूल्य रत्न , दवाईयां, रेडीमेड कपड़े, अनस्टिच कपड़े, ऑर्गनिक रसायन, हल्का इंजीनियरिंग समान, लोहा और स्टील निर्यात करता है। भारत और कनाडा के बीच व्यापार आसान होने की वजह से भारत ने वहां बड़ा निवेश किया है। भारत में 600 से कनाडाई कंपनियां काम कर रही है। कनाडा के साथ संबंध बिगड़ने पर वहां नौकरी-धंधे पर भी असर होगा। भारत कनाडा से कृषि और बागबानी से जुड़े उत्पाद खरीदता है। कनाडा में इस बिजनेस में अधिकांश भारतीय मूल के पंजाबियों का वर्चस्व है। अगर दोनों देशों के बीच ट्रेड प्रभावित होता है कि इसकी सीधी मार कनाडा में कृषि और बागबानी के व्यवसाय से जुड़े लोगों पर होगा। साल 2017 में ऐसा देखा जा चुका है, जब भारत ने पीली मटर की दाल आयात पर अंकुश लगाने के लिए टैरिफ बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया था। भारत कनाडा से दाल, न्यूजप्रिंट, कोयला, फर्टीलाइजर, दालें, वुड पल्प और एल्युमीनियम जैसे सामान इंपोर्ट करता है। अगर विवाद बढ़ता है तो भारत किसी दूसरे मित्र देश से इन सामनों को इंपोर्ट कर सकता है। भारत कनाडा से दाल की सबसे ज्यादा खरीदारी करता है। अगर खपत और उत्पादन की बात करें तो भारत में 230 लाख टन दाल की खपत है, जबकि पैदावार कम है। ऐसे में भारत कनाडा से ये खरीदता है। हालांकि इसके लिए भारत के पास अन्य मित्र देशों का विकल्प खुला है। भारत इन सामानों के लिए कनाडा पर निर्भर नहीं है। अगर विवाद बढ़ा तो असर दोनों पर होगा।
बताया जाता है कि हाल ही में भारत में आयोजित हुए जी-20 सम्मेलन में जो बाइडेन सहित सभी वर्ल्ड लीडर्स के साथ पीएम मोदी की जबरदस्त बॉन्डिंग देखने को मिली थी। हालांकि, इस वैश्विक आयोजन में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अलग-थलग दिखाई दिए थे। पीएम मोदी के साथ जब जस्टिन ट्रूडो की मुलाकात हुई थी तो पीएम मोदी ने कनाडा में चल रहीं भारत विरोधी गतिविधियों का मुद्दा उठाया था। खालिस्तानी एक्टिविटी पर जोर डालते हुए पीएम मोदी ने इस पर गहरी चिंता जाहिर की थी। जी-20 सम्मेलन में ऐसा पहली बार नहीं हुआ था, जब भारत ने कनाडा के सामने भारत के खिलाफ चल रहे षड़यंत्र के मुद्दे को उठाया था। कई मौकों पर इससे पहले भी भारत सरकार खालिस्तान समर्थक आंदोलन के बारे में चिंता जाहिर कर चुकी है। साल भी भारत ने कनाडा और ब्रिटेन सहित कई पश्चिमी देशों से खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ कदम उठाने की अपील की थी।
ज्ञात हो कि कनाडा दुनिया में रूस के बाद सबसे बड़ा देश है, लेकिन आबादी मात्र 3.80 करोड़ है। इसलिए कनाडा की आप्रवासन नीति बड़ी उदार है। वहां बाहर से लोगों को बुलाया जाता है। चीन और दक्षिण एशिया तथा वियतनाम, थाईलैंड, मेक्सिको, ब्राजील और अरब देशों की बहुत बड़ी आबादी वहां बसी है। परंतु पिछले दिनों में जो कुछ हुआ उससे भारत और कनाडा के बीच रिश्ते शत्रुतापूर्ण हो गए हैं। दिल्ली में हुए G-20 सम्मेलन के बाद जैसे ही कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपने देश पहुंचे तो पाया कि मीडिया और विपक्षी दल कंजर्वेटिव पार्टी ने उनको बुरी तरह घेर लिया है। कहा गया कि ट्रूडो ने भारत में कनाडा का अपमान करवा दिया। दरअसल जस्टिन ट्रूडो के साथ दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत ही रूखा व्यवहार किया।
इसके बाद ट्रूडो ने कनाडा पहुंच कर ओटावा की पार्लियामेंट हिल्स स्थित हाउस ऑफ कामंस में भारत के ऊपर खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप लगाया और कहा कि इस हत्याकांड की जाँच में संकेत मिल रहे हैं कि भारत के सरकारी एजेंटों ने यह हत्या करवाई है। मालूम हो कि कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया में पिछली 18 जून को निज्जत की हत्या कर दी गई थी। निज्जर को भारत सरकार ने आतंकवादी घोषित किया हुआ था। हालांकि बाद में उनकी विदेश मंत्री मिलानी जॉली ने लीपा-पोती करते हुए कहा, कि ऐसा सिर्फ प्रतीत होता है।
अभी G-20 की बैठक के दौरान कनाडा के वैंकूवर शहर में खालिस्तान के लिए उनके नेता ने जनमत संग्रह करवाया था। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब इसका विरोध किया, तब जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि उनके देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। ऐसी स्थिति में संबंध तो खराब होंगे ही। G-20 बैठक के दौरान हुई बेइज्जती से जस्टिन ट्रूडो इतना भड़क गये, कि ओटावा स्थित हाउस ऑफ़ कॉमस में बयान ही दे दिया कि खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या भारत सरकार के एजेंटों ने करवाई थी।
दरअसलकनाडा में सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी की सरकार है। जस्टिन ट्रूडो की दिक्क्त यह है, कि उनकी पार्टी अल्पमत में है। उन्हें कनाडा की अल्ट्रा लेफ्ट पार्टी का सपोर्ट मिला है।इसके नेता जगमीत सिंह हैं, जिनकी सहानुभूति खालिस्तानी नेताओं के साथ है। हालांकि जगमीत सिंह ने ख़ुद को कभी खालिस्तानी नहीं कहा, किंतु खालिस्तानी नेताओं को बचाने का काम वे करते हैं। राजनीति में आने के पूर्व वे एक क्रिमिनल लायर थे। पिछली पार्लियामेंट चुनाव में उन्हें 24 सीटें मिली थीं और जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी को 157। लेकिन बहुमत के लिए 170 का आंकड़ा जरूरी था, इसलिए लिबरल पार्टी ने अल्ट्रा लेफ्ट न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का सपोर्ट लिया। ऐसे में कनाडा में बसे सिख उग्रवादियों का मनोबल बढ़ गया। 1980 के दशक का सिख अलगाववादी आंदोलन फिर फलने-फूलने लगा।
यद्यपि ऐसा नहीं है, कि अल्ट्रा लेफ्ट पार्टी में सिर्फ़ सिख ही हों, अन्य लोग भी काफी हैं। भारतवंशी कनाडायी, श्वेत लोग भी हैं, लेकिन कनाडा की संघीय संसद में 18 सांसद हैं। इसमें से अधिकांश खालिस्तानी नेताओं के प्रति सहानुभूति रखते हैं। कुछ हिंदू सांसद भी हैं, चंद्र आर्या, अनीता आनंद और सोनिया साहनी हैं, जिनके दबाव में पिछले वर्ष 2022 के नवम्बर महीने को ट्रूडो ने हिंदू हेरिटेज मंथ घोषित किया था। यह बात वहां के खालिस्तानसमर्थक सिखों को अच्छी नहीं लगी। उन्होंने वैंकूवर के सरे और टोरंटो के ब्रैम्पटन में भारत विरोधी गतिविधियां शुरू कर दीं। कई बार तो टोरंटो में भारत कांसुलेट जनरल के ऑफिस के सामने प्रदर्शन भी हुआ। इसके अतिरिक्त हिंदू मंदिरों में तोड़-फोड़ भी हुई। किंतु कनाडा की ट्रूडो सरकार ने कोई भी कार्रवाई नहीं की। जब भी उनसे पूछा गया, वे इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला बता कर चुप साध गए।
भारत का यह मानना है किहिंदू मंदिरों में तोड़-फोड़ पर तो कनाडा सरकार को फ़ौरन कार्रवाई करनी चाहिए। क्योंकि यह तो कनाडा जैसे लोकतांत्रिक देश में एक दूसरे समुदाय के पूजा स्थलों पर हमला है। जिस कनाडा में रंग भेद और नस्ल भेद के विरुद्ध कड़े कानून हैं, वहां हिंदू समुदाय के पूजा स्थलों पर हमला क्या बताता है। मालूम हो कि जब भारत में सिख आतंकवाद चरम पर था तथा कनाडा में इन आतंकवादियों के अड्डे बने हुए तब इन्हीं जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो प्रधानमंत्री थे। उस समय भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें कई बार अवगत कराया लेकिन उस समय पियरे ट्रूडो भी अनसुनी कर गए।
कनाडा की इस कार्रवाई और भारत सरकार पर लगे आरोप से दुनिया में यह संदेश गया, कि भारत दूसरे देश की ज़मीन पर हत्याएं करवा रही है। कनाडा के एक वरिष्ठ पत्रकार ताहिर गोरा ने कहा है, कि “हम सब जानते हैं कि ट्रूडो का भारत दौरा कुछ ख़ास नहीं रहा। लेकिन उन्होंने जो ये आरोप लगाए हैं उसकी टाइमिंग हम सारे कनाडा के लोगों के लिए शॉकिंग है। ये बात वो दो हफ्ते पहले या एक हफ्ते बाद भी कर सकते थे।” अब अगर भारत सरकार ने सख्ती से इस आरोप को काउंटर नहीं किया, तो आने वाले दिन भारतीय प्रवासियों के लिए शुभ नहीं। फ़िलहाल भारत को कनाडा में बसे अपने लोगों के बारे में सोचना चाहिए।