MP ELECTION 2023-20 वर्षों से कांग्रेस सत्ता से बाहर है और भाजपा सत्तासीन है, इस 20 वर्ष के 15 महीने के लिए एक इंटरवेल की तरह कांग्रेस की सत्ता में वापसी होती है लेकिन इंटरवेल खत्म होते ही भाजपा की पूरी फिल्म शुरु हो जाती है जो इस समय 2023 का विधानसभा चुनाव फेस करने के लिए मैदान में है, कांग्रेस को सत्ता में वापस लौट जाने का विश्वास है तो भाजपा एक और कार्यकाल के लिए स्वयं को आश्वस्त मानकर चल रही है, दावे-प्रतिदावे के मध्य यक्ष प्रश्न से दोनों राजनीतिक दल जूझ रहे हैं किवे बीते बीस वर्ष में मतदाता के यप मं तैयार हुए युवाओं को कैसे समझाए कि किसने मध्य प्रदेश को शीर्ष पर पहुंचाया, शिवराज सरकार के कार्यों को वे नए मतदाता देख रहे हैं वे इन कार्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि इस सरकार का काम कितना संतोषजनक रहा और प्रदेश की नई सूरत गढऩे में वे कितना कामयाब रहे, हालांकि भाजपा इस यक्ष प्रश्न से जूझ रही है कि वह कैसे बतावे कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में प्रदेश के विकास के लिए कुछ नहीं किया 2003 से 2008 या थोड़ा आगे चले जाएंतो भाजपा ने 2013 के विधानसभ चुनाव तक दिग्विजय सिंह को बंटाधारब ताकर कांग्रेस शासनकाल की कमियां गिना दीं।
2018 के चुनाव में वह दांव चल नहीं और अब 223 में यह मुद्दा तो लगभग अपना मायने खो चुका है। अब नए मतदाता के लिए बंटाधार कोई मायने नहीं रखती है कांग्रेस भी इसी यक्ष प्रश्न से दो-चार हो रही है, कांग्रेस के पास शिवराज सिंह सरकार की कमियां गिनाने के हजारों मौके हैं लेकिन वह पूरे तर्क के साथ अपनी बात नहीं रख पा रही है। यही नहीं स्वयं को मध्यप्रदेश के हित में किये गए कार्य का लेखा-जोखा देने और युवा वोटरों को समझाने का उनको भी तोड़ समझ नहीं आ रहा है, दो दशक में जो नए मतदाता तैयार हुए हैं उनके लिए भाजपा और शिवराज सिंह ही हैं और इसी को आधार बना कर अपना मानस बनारहे हैं, एकबारगी इस यक्ष प्रश्न से भाजपा थोड़े सुकून में है लेकिन कांग्रेस का संकट बड़ा है।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का बयान
— Ek Sandesh (@EkSandesh236986) October 13, 2023
भाजपा सरकार में किसानों का हनन हुआ है
नारसन से रूड़की तक किसान सम्मान यात्रा निकालेंगे'
किसानों का ब्याज माफ कराने की मांग करेंगे
'इकबालपुर शुगर मिल का बकाया भुगतान की मांग'#Haridwar #uttrakhand #HarishRawat #PushkarSinghDhami pic.twitter.com/xp3P3srzeH
एक साल पले से ही विधानसभा चुनाव की जमावट शुरु हो गई थी, भाजपा स्वयं को कम्फर्ट जोन में मानकर चल रही थी और कांग्रेस को लग रहा था कि इस बार भाजपा की रवानगी तय है, हालांकि शुरुआती दौर में कोर्ठ बड़ी उठापटक नहीं हुई लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता तारीख नजदीक आने लगी यान दलों में सक्रियता आ गई एक-दूसरे पर जुबानी जंग तेज हो गई, कांग्रेस भाजपा केा कटघरे में खड़ा करने के लिए उसके बीस वर्षों के कार्यकाल की कमियां गिनाने लगी, कांग्रेस के लिए यह आसान भी है लेकिन भाजपा कांग्रेस को सतही तौर पर घेरती दिखी, भाजपा के सामने संकट यह है कि वह किन मुद्दों पर कांग्रेस को घेरे, कांग्रेस में परिवारवाद एकमात्र मुद्दा था जिस पर भाजपा आक्रामक हो गई, इधर राजनीतिक हलकों में सुनियोजित ढंग से स्टेबलिश किया जाने लगा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लोग अब ऊब गए हैं लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि आज भी शिवराज सिंह मध्यप्रदेश के एकमात्र स्टार राजनेता हैं जिनका चेहरा किसी को परेशान नहीं करता है, वह आज भी एक आम आदमी के मुख्यमंत्री के रूप में चिन्हें जाते हैं, किसी के कंधे पर हाथ रखना तो कहीं भी जमीन पर बैठकर बतियाने का अंदाज, फिर ढोल-नगाड़े लेकर कीतन भजन करते शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री से ज्यादा आम आदमी लगते हैं, जब वे कहते हैं कि मैं इस प्रदेश का विशाल परिवार चला रहा हूं तो लोग संवेदनाओं में भींग जाते हैं, वह पहले भी मध्यप्रदेश की जनता को अपना भगवान मान रहे हैं, शिवराजसिंह चौहान की यह सादगी और सरलता ना केवल कांग्रेस पर बल्कि सभी विरोधियों पर भारी पड़ती है, पहनावे में शिवराजसिंह चौहान कहीं से अभिजात्य नहीं लगते हैं। सत्ता की चाबी भाजपा के हाथों में है तो वह नाबाद विकास कार्यों का ऐलान कर चुकी है, शिवराज सिंह चौहान सरकार की योजनाएं सभी वर्गों को ध्यान में रखकर बनायी गई हैं, कांग्रेस ने अपना वचन पत्र का ऐलान किया तो शिवराज सिंह चौहान उसे भी ले उड़े और वचन को कर्म के रूप में लागू कर दिया, इतना सब होने के बाद भी बीस वर्ष की कामयाबी और नाकामी युवा वोटरों को बताने की चुनौती दोनों दलों के पास बराबर से है, सरकार की नाकामी स्टेबलिश करने में कांग्रेस कामयाब हो जाती है तो भाजपा के लिए मुसीबत बढ़ जाती है और भाजपा अलग-अलग संचार माध्यमों के जरिए अपनी बीस वर्ष की कामयाबी ठीक से पहुंचाने में कामयाब रही तो कांग्रेस के लिए जीत का रास्ता कठिन नहीं होगा, कांग्रेस के पास दिग्विजय सिंह जैसा सरल और मिलनसार नेता है, वे सबसे मिलते हैं और सबकी खबर रखते हैं, दिग्गी राजा कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह का कार्य व्यवहार, आम आदमी का रहा है, ऐसे में जब मैदान में दिग्विजय सिंह आएंगे तब मामला टफ होता नजर आएगा, कमलनाथ भी आक्रामक मूड में हैं और इसका क्या असर मतदाताओं पर होगा, यह आने वाला समय बताएगा।