मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनावों की तारीख तय हो चुकी है। आज से ठीक एक महीने बाद 17 नवंबर को मतदान होगा। भाजपा ने चार सूची जारी कर 136 प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने भी पहली सूची में 144 नामों की घोषणा कर दी है। दोनों दलों के प्रत्याशी चुनावी रण में जुट चुके हैं। इसके अलावा बसपा, सपा और आम आदमी पार्टी भी इस बार के चुनाव को उम्मीद की नजर से देख रही है। दोनेां ही पार्टियों ने अपनी-अपनी सूची जारी कर कई सीटों पर नामों की घोषणा कर दी है। विशेषकर उप्र से सटी हुई सीटों पर ये दल अपना दमखम दिखाने में जुट गए हैँ।
पिछले साल हुए नगरीय निकाय चुनाव में मध्यप्रदेश की देहलीज पर आप की दस्तक ने भाजपा-कांग्रेस की उलझन बड़ा दी है। वहीं यूपी की सीमा से सटी सीटों पर भी सपा-बसपा की प्रभावी हलचल नजर आ रही है। इन हालातों को देखकर अंदाजा लगाया ही जा रहा है कि प्रदेश सरकार बनाने में इस बार छोटे दलों की अहम भूमिका हो सकती है। मध्यप्रदेश में 2018 में आए परिणामों में कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी दी थी, लेकिन इसके 15 महीने बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के थेाकबंद विधायकों ने हाथ का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम सरकार बना ली थी। ऐसे में बड़ी संख्या में भाजपा के पुराने जमीनी नेताओं की पार्टी में असहज स्थितिबन गई है।
69वां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह2023 विजेताओं
— Ek Sandesh (@EkSandesh236986) October 17, 2023
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भाजपा की सूची जारी होने के बाद ऐसी कई सीटों पर बगावत भी सामने आई है। प्रदेश की राजनीति में विंध्य इलाका भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है। यहां की 30 सीटों में से 24 पर भाजपा का कब्जा है, जातिगत राजनीति प्रभावी रहती हे। हालांकि, इस बार भाजपा के सामने गढ़ बचाने की चुनौती है। कांग्रेस और भाजपा दोनों की राजनीति के केंद्र विंध्य में अपना पूरा जोर लगा रही है तो अन्य दलों का प्रभाव भी इस चुनाव में असर डालेगा। तेजी से आगे बढ़ रही आम आदमी पार्टी पर सबकी नजरें गढ़ी हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि भाजपा और कांग्रेस के अलावा इस बार सपा, बसपा और आप से संभावित जीतने वाले प्रत्याशी भी सरकार बनाने में निर्णायक होंगे।