लखनऊ, अमृत विचार। आम खाने के शौकीनों को मौसम का बिगड़ा मिजाज ‘गुड न्यूज’ नहीं दे रहा। तेज आंधी और बारिश, ओला पड़ने के कारण आम की फसल भी बर्बाद हुई है। ऐसे में आम की नैसर्गिक मिठास और पैदावार पर प्रभाव पड़ेगा। ओले से चोटिल आम दागी होंगे सो अलग। जाहिर है कम पैदावार के चलते आने वाले समय में बाजारों में आम के दाम चढ़े रहेंगे और इसे खाने के लिए ऊंची कीमत चुकानी पड़ेगी। यानि आम भी इस बार ‘खास’ हो जाएगा।
अभी एक सप्ताह पहले तक दुनियाभर भर में अपने लजीज स्वाद और बेहतरीन खुशबू वाले आमों के लिए मशहूर मलिहाबाद में खुशियां पसरीं थीं। इसके पीछे आम के बौरों से लदे पेड़ों का दृश्य था। फिलहाल यहां मायूसी छायी है। तेज आधी-पानी के बाद अमिया नीचे बिखरीं पड़ीं हैं। मलिहाबाद क्षेत्र में तो 31000 हेक्टेयर जमीन पर दशहरी समेत, कई किस्मों के आमों की पैदावार होती है। यहीं से आम दुनियाभर में एक्सपोर्ट भी होता है।
दिलचस्प हकीकत तो यह है कि आम की फसल अभी ठीक से अमिया भी न बन सकी थी। माल निवासी लेखराम मौर्या का तर्क है कि जब तक कि इसका वजन 50 ग्राम से ऊपर न हो तब तक यह तो चटनी बनाने के लायक भी नहीं। ऐसे में बाजार में इसकी बिक्री एक रुपये किलो तक भी हो जाए तो बहुत है। ऐसे में किसानों की कमर टूटना स्वाभाविक है क्योंकि मलिहाबाद, काकोरी माल, मोहनलालगंज की 70 फीसदी आबादी आम पर निर्भर है।
माल मलिहाबाद के कन्हैयालाल, खलील जैसे आम किसानों का भी दुखड़ा है कि इस बार पचास प्रतिशत आम गिर चुका है और आधी पानी का यही हाल रहा तो जो बचा है वह भी बर्बाद होगा। यहां तक कि जिस फल पर ओला पड़ा है वह भी दस दिन के अंदर झड़ जाएगा।
आम का उत्पादन बेहतर बनाने के लिए जिन रसायनों का प्रयोग होता है वह अब बे-असर हो जाएंगे। ऐसे में आमों में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी क्षीण होगी। कीटनाशक भी नमी पाकर निष्क्रिय हुए तो आम की पैदावार पर असर पड़ना स्वाभाविक होगा। पैदावार कम होगी और गुणवत्ता भी प्रभावित होगी …डॉ. अवधेश मिश्रा, कृषि विशेषज्ञ।