धार्मिक नगरी उज्जैन में एक इलाका ऐसा है, जहां बरसों से तोप की आवाज सुनकर ही सेहरी और इफ्तारी होती है। यह इलाका है कोट मोहल्ला यहां तोप वाली मस्जिद है, जहां से रमजान महीने में तोप चलाकर सेहरी और इफ्तारी के समय की सूचना दी जाती है।
पूरे देश में खुदा की इबादत के रमजान महीने को अल्लाह की इबादत कर मनाया जा रहा है। रमजान में हर दिन सेहरी और इफ्तार के लिए रोजेदारों को अलर्ट करने के वैसे तो कई आधुनिक तरिके हैं। लेकिन, सेहरी का वक्त खत्म हो गया या फिर इफ्तार करने का वक्त हो गया है। इसके लिए आज भी उज्जैन के कोट मोहल्ले में बरसों पुरानी तोप छोड़कर सूचना देने की परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है।
तोप वाली मस्जिद के सदर मोहम्मद मकसूद बबलू भाई बताते हैं कि कोट मोहल्ला की इस मस्जिद का नाम तोप वाली मस्जिद इसीलिए है, क्योंकि रमजान महीने में यहां सेहरी और रोजा इफ्तार की सूचना तोप चलाकर दी जाती है। करीब सौ साल से अधिक पुरानी तोप में बारूद भरकर अलसुबह सेहरी और शाम को सूरज ढलते ही इफ्तार के समय तोप चलाई जाती है। ईद के एक दिन पहले चांद दिखाई देने कि सूचना के भी सात बार तोप चलाकर दी जाती है। मस्जिद में तोप चलाने के लिए चार लोगों को जिम्मेदारी दी गई है जो पूरे महीने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते है। इनमें मेहताब भाई, युनूस भाई, परवेज भाई और रईस भाई शामिल हैं।
पूरे शहर में सुनाई देती थी तोप की आवाज
मुस्लिम समाज के बुजुर्ग बताते हैं कि जिस तोप को छोड़कर सेहरी और इफ्तारी की सूचना दी जाती है वह करीब सौ साल से अधिक पुरानी है। कभी पूरे शहर में इसकी आवाज सुनाई देती थी, पर अब इसकी आवाज पुराने शहर में ही सुनाई देती है। कारण यह की अब बड़े-बड़े भवन और होटल आदि बन गए हैं और अनगिनत वाहनों की ध्वनि में तोप की आवाज दब जाती है। सदर मोहम्मद मकसूद बबलू के अनुसार पूरे महीने तोप छोड़ने के लिए लगने वाले बारूद और इससे संबंधित अन्य खर्च का वहन मस्जिद कमेटी ही उठाती है, इसके लिए किसी से चंदा नहीं लिया जाता है।