उत्तराखंड: फ्लोटिंग पॉपुलेशन के लिए केंद्रीय सहायता की आस अधूरी

केंद्रीय बजट में फ्लोटिंग पॉपुलेशन के हिसाब से केंद्रीय सहायता का प्रावधान न होने से राज्य में कुछ मायूसी भी है। वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से राज्य के जिन मुद्दों के लिए केंद्रीय सहायता अनुरोध किया था, उसमें फ्लोटिंग पापुलेशन का विषय भी प्रमुखता से शामिल था, लेकिन बजट में इसका कोई जिक्र नहीं हुआ।

इधर,मुख्यमंत्री ने इस विषय को नीति आयोग के समक्ष रखने का फैसला किया है। कहा, हमारी जितनी जनसंख्या है, उससे आठ गुना अधिक देशभर से लोग यहां आते हैं। चारधाम यात्रा, कांवड़ यात्रा, अन्य धार्मिक यात्राओं में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं और यात्रियों के लिए हमें व्यवस्था करनी होती है। नीति आयोग से हम निवेदन करेंगे कि करोड़ों लोगों की व्यवस्था के लिए हमें केंद्र से सहायता मिलनी चाहिए।

कहा, राज्य के हजारों कर्मचारी नई पेंशन योजना में बदलाव की उम्मीद कर रहे थे। हर साल उत्तराखंड भीषण वनाग्नि का सामना करता है। इससे होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए प्रदेश सरकार ने केंद्र से वनाग्नि और आपदा में हाईवोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन को होने वाली क्षति को एसडीआरएफ के मानकों शामिल करने का अनुरोध किया था। इसका भी बजट में जिक्र नहीं हुआ।

वृद्धावस्था पेंशन में केंद्रांश बढ़ाने की आस अधूरी
सरकार दुर्गम क्षेत्रों में जल विद्युत परियोजना में दो करोड़ प्रति मेगावाट के हिसाब से वाइबिलिटी गेप फंडिंग के प्रावधान की उम्मीद कर रही थी, बजट में इसका भी उल्लेख नहीं हुआ। इसके अलावा मनरेगा के मानकों में छूट और वृद्धावस्था पेंशन में केंद्रांश को बढ़ाकर 200 से 500 करने की मांग भी अधूरी रह गई।

बजट में सरकार ने ऋषिकेश-उत्तरकाशी और टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन प्रोजेक्ट, सौंग बांध परियोजना के लिए विशेष प्रावधान की उम्मीद बंधी थी, जो पूरी नहीं हो पाई। इसके अलावा ग्रीन बोनस, भूस्खलन वाले क्षेत्रों के उपचार के लिए शोध केंद्र, पीएमजीएसवाई की तर्ज पर जल जीवन मिशन में मरम्मत के लिए वित्तीय प्रावधान का भी बजट में जिक्र नहीं हुआ।

नौ प्राथमिकताओं में पर्यावरणीय चिंता न के बराबर

सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल कहते हैं कि बजट में नौ प्रमुख प्राथमिकताओं में गंभीर पर्यावरणीय और जलवायु चुनौतियां बेहद कम या न के बराबर जिक्र है। उत्तराखंड, हिमाचल और सिक्किम के लिए जरूर आश्वासन है, लेकिन भारतीय हिमालयी क्षेत्र के लिए बजट में कुछ खास नहीं है। उत्तराखंड के लिए ग्रीन बोनस या फ्लोटिंग पापुलेशन के लिए कोई आवंटन नहीं किया गया। रुद्रप्रयाग और टिहरी जिले देश के 147 जिलों में सबसे अधिक भूस्खलन प्रभावित हैं। उम्मीद थी कि बजट में उत्तराखंड के लिए कुछ ग्लेशियर या भूस्खलन अनुसंधान केंद्र स्थापित किए जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।

उत्तराखंड में 95,000 करोड़ रुपये की पारिस्थितिकी सेवाओं की बात होती है। हिमालयी राज्यों ने मिलकर हिमालय मंत्रालय की भी मांग की थी। बजट में इन मांगों को नजरअंदाज कर दिया गया। आने वाले समय में जीईपी के आंकड़े भी उपलब्ध होंगे। उत्तराखंड सरकार को पता लगाना चाहिए कि हर बार उनकी ग्रीन बोनस को अपीलें क्यों विफल हो रही हैं। सिंचाई व बाढ़ न्यूनीकरण सेक्टर में बिहार के लिए 11500 करोड़ रुपये का स्पष्ट आवंटन है। बजट में हमारे प्रदेश के पिछले वर्ष 2023 की आपदा के लिए सहायता पैकेज का उल्लेख है, किंतु सहायता राशि नहीं है। यह अधिक स्पष्ट होता अगर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम के लिए भी बिहार की तरह आपदा सहायता राशि घोषित की गई होती।

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