राष्ट्रीय मस्जिद बैतुल मुकर्रम में पूर्व और वर्तमान ख़तीब (जुम्मा की नमाज़ का उपदेश देने वाला व्यक्ति) के अनुयायियों के बीच झड़प हुई, जिसमें कम से कम 50 लोग घायल हो गए। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि वर्तमान खतीब मुफ्ती वलीउर रहमान खान जुमे की नमाज से पहले प्रवचन दे रहे थे, तभी पूर्व खतीब मुफ्ती रूहुल अमीन अपने अनुयायियों के साथ मस्जिद में पहुंचे और माइक्रोफोन छीनने का प्रयास किया। इसके कारण खतीब वलीउर और रूहुल के अनुयायियों के बीच टकराव हुआ, जिसके परिणामस्वरूप शारीरिक हमला हुआ जिसमें कई लोग घायल हो गए।
एक समय ऐसा आया जब दोनों पक्षों के अनुयायियों ने मस्जिद के ग्राउंड फ्लोर पर मोर्चा संभाल लिया, जहां इमाम नमाज अदा करते हैं। उस समय वे मस्जिद से जूते और जूतों के डिब्बे सहित विभिन्न वस्तुओं को एक-दूसरे पर फेंक रहे थे और मस्जिद के अंदर तोड़फोड़ कर रहे थे। दोनों समूहों के बीच झड़प के दौरान कई नमाजी अराजकता से परेशान थे जिससे कुछ लोग मस्जिद छोड़कर चले गए। करीब आधे घंटे के बाद पूर्व खतीब मुफ्ती रूहुल अमीन अपने अनुयायियों के साथ विरोध के बीच मस्जिद से चले गए। बाद में कानून लागू करने वालों की मदद से जब माहौल शांत हुआ तो लोग फिर से नमाज अदा करने के लिए मस्जिद में दाखिल हुए।
ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस के मोतीझील डिवीजन के डिप्टी कमिश्नर शहरियार अली ने कहा कि मस्जिद के अंदर नए और पुराने खतीबों को लेकर कुछ समस्या थी लेकिन कानून प्रवर्तन एजेंसी के सदस्य मौके पर पहुंचे। जैसे ही नमाजी मस्जिद से बाहर निकल रहे थे एक समूह ने अवामी लीग विरोधी नारे लगाने शुरू कर दिए। नमाजी मस्जिद के सामने सड़क पर इकट्ठा होने लगे, लेकिन बाद में सेना, पुलिस और रैपिड एक्शन बटालियन के जवानों ने उन्हें तितर-बितर कर दिया। 5 अगस्त को अवामी लीग सरकार के पतन के बाद भागे हुए खतीब रूहुल अमीन की वापसी ने स्थिति को और भड़का दिया।
बता दें बैतुल मुकर्रम राष्ट्रीय मस्जिद बांग्लादेश की राष्ट्रीय मस्जिद है, जो राजधानी ढाका के मध्य में स्थित है। इसका अद्वितीय वास्तुशिल्प डिजाइन और ऐतिहासिक महत्व इसे देश में एक प्रमुख मील का पत्थर और इस्लामी गतिविधियों का केंद्र बनाता है। मस्जिद का विचार 1950 के दशक के अंत में आया था। मस्जिद का निर्माण 1960 में तत्कालीन पाकिस्तानी सरकार के संरक्षण में शुरू हुआ था, क्योंकि 1971 में अपनी आजादी से पहले बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था। बैतुल मुकर्रम का निर्माण 1968 में पूरा हुआ था। डिजाइन का काम अब्दुल लतीफ इब्राहिम बवानी ने करवाया था। एक प्रमुख उद्योगपति, और वास्तुशिल्प कार्य का नेतृत्व टी अब्दुल हुसैन थरियानी ने किया था।