मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों को लेकर तमाम एग्जिट पोल्स ने जो दावा किया थो, वो सटीक निकले हैं। भाजपा ने क्लीन स्वीप कर अपना मिशन पूरा कर लिया है। चौंकाने वाली बात ये रही कि कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाली छिंदवाड़ा सीट पर भी भाजपा ने बढ़त बना रखी है।
मध्य प्रदेश में 2014 में मोदी लहर में कांग्रेस के बड़े-बड़े गढ़ ढह गए थे। सिर्फ गुना और छिंदवाड़ा में ही कांग्रेस को जीत मिली थी। 2019 में तो माहौल ही बदल गया। गुना में ज्योतिरादित्य सिंधिया को हार मिली। कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा को नकुल नाथ महज 25 हजार वोट से जीत सके थे। 2023 के विधानसभा चुनावों के नतीजों के आधार पर कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह कम से कम 5 सीटों पर चुनौती देने की स्थिति में है। हालांकि, भाजपा के केंद्रीय और राज्य के नेतृत्व ने संकल्प लिया और सभी सीटों को जीतने के लिए पूरी ताकत लगा दी। इसका असर दिख भी रहा है।
भाजपा की बड़ी जीत के पांच बड़े कारण
- मोदी मेजिकः मध्य प्रदेश में भाजपा ने सतना में गणेश सिंह और मंडला में फग्गनसिंह कुलस्ते को उम्मीदवार बनाया, जिन्होंने विधानसभा चुनावों में हार का सामना किया था। दोनों भी अपनी सीट जीत रहे हैं। यह बताता है कि मतदाताओं ने मोदी के चेहरे पर वोट किया है। मोदी की लहर अब भी प्रदेश में कायम है। भाजपा के तमाम नेता भी दावा करत रहे कि मोदी के मन में MP है तो MP के मन में भी मोदी है। मोदी के चेहरे पर मतदाताओं का भरोसा कायम है।
- राम मंदिर मुद्दा कायमः मध्य प्रदेश में राम मंदिर का मुद्दा कायम रहा। सर्वे एजेंसियों ने जब वोटरों से बात की तो उन्होंने कहा कि जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे। 22 जनवरी को जब अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हुई तो पूरे मध्य प्रदेश में माहौल राममय था। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के नेतृत्व में भाजपा के कैम्पेन में यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया कि कांग्रेस ने राम मंदिर का न्योता ठुकराया है। इसी वजह से बड़ी संख्या में कांग्रेस नेता भाजपा में भी शामिल हुए थे।
- उम्मीदवारों का चयन: भाजपा ने विधानसभा चुनावों से सबक लेते हुए इस बार भी उम्मीदवारों की घोषणा चुनावों की तारीख आने से पहले ही कर दी थी। इसका भी फायदा पार्टी को मिला। कांग्रेस ने विधायकों और विधानसभा चुनाव हारे नेताओं को उम्मीदवार बनाया। इतना ही नहीं, सपा के लिए खजुराहो सीट छोड़ना और इंदौर में अक्षय बम को उम्मीदवार बनाना भी पार्टी के खिलाफ गया। इससे भी मतदाताओं में यह माहौल बना कि कांग्रेस मुकाबला ही नहीं करना चाहती।
- बड़े नेताओं की घेराबंदीः विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के अभियान का नेतृत्व कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं ने किया। लोकसभा चुनाव में पार्टी ने छिंदवाड़ा में नकुल नाथ और राजगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी बनाया। इससे कमलनाथ छिंदवाड़ा में और दिग्विजय राजगढ़ में बंधकर रह गए। वह अन्य सीटों पर चुनाव प्रचार नहीं कर सके। ऐसे में कम अनुभवी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और उमंग सिंघार जैसे नेताओं पर प्रचार अभियान की जिम्मेदारी आ गई। चुनाव अभियान के दौरान दोनों की खटपट की खबरें भी आईं। इसे दूर करने के लिए जीतू पटवारी ने खुद उमंग सिंघार का वीडियो इंटरव्यू लेकर सोशल मीडिया पर पब्लिश किया। हालांकि, तब तक डैमेज हो चुका था।
- कांग्रेस में मची भगदड़ः भाजपा के आंकड़ों पर यकीन करें तो कांग्रेस के तीन लाख से अधिक कार्यकर्ता पार्टी में शामिल हुए हैं। नरोत्तम मिश्रा के नेतृत्व में भाजपा की न्यू जॉइनिंग टोली ने सक्रियता के साथ कांग्रेस नेताओं को भाजपा की सदस्यता दिलाई। छिंदवाड़ा में कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ के करीबी दीपक सक्सेना से लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी तक भाजपा में आए। कांग्रेस के पूर्व विधायक और विधानसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़े नेता भी भाजपा में आए। इससे माहौल बना कि कांग्रेस तो मुकाबले में है ही नहीं।