राजधानी में संग्रहालय इतिहास से रूबरू करा रहे हैं। यहां बनती-बिगड़ती दिल्ली की दास्तां का देखा जा सकता है। उस दौर की विभीषिका को आसानी से महसूस कर सकते हैं। लाल किला के अंदर बने संग्रहालय 1857 की क्रांति से लेकर जलियांवाला बाग की दास्तान सुना रहे हैं।
यही नहीं, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज के किस्से-कहानियां दीवारों पर लिपटी हुई हैं। सभी पर अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार के साथ आजादी के संघर्ष की गाथाओं की नक्काशी है। यहां दीवारों को देखने पर कुर्बानियों का अक्स झलकता है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हो या बहादुर शाह जफर पर चला मुकदमा। आजाद हिंद फौज के सेनानियों पर मुकदमे की कहानी बयां करते दस्तावेज यहां प्रदर्शित हैं।
प्रथम स्वाधीनता संग्राम संग्रहालय में 1857 से संबंधित दस्तावेज हैं। इसमें तत्कालीन दिल्ली का मानचित्र, अंग्रेजों से मोर्चा लेते समय की रणनीति संबंधी दस्तावेज, अश्मलेख, चिट्ठियां, चित्र, अभिलेख, पटौदी के नवाब और बहादुरशाह जफर द्वारा इस्तेमाल हथियार व उनके कपड़े यहां प्रदर्शित किए गए हैं। इन्हें देख उस दौर का मंजर खुद-ब-खुद आंखों के सामने तैरने लगता है।
यही नहीं, यहां दिल्ली पर कब्जे के दौरान जनरल जे निकोलसन द्वारा इस्तेमाल फील्ड ग्लास व अन्य उपकरण शामिल हैं। साथ ही, अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीयों के विद्रोह को दर्शाती लगभग एक शताब्दी पुरानी पेंटिंग प्रदर्शित की गई हैं। उधर, मेरठ से क्रांतिकारियों का दल पैदल चलकर दिल्ली आया और बहादुर शाह जफर से मुलाकात करने का दृश्य भी लोगों को अपनी ओर खींच रहा है।
जलियांवाला बाग से जुड़ी यादों से हो सकेंगे रूबरू
याद-ए-जलियां संग्रहालय जलियांवाला बाग से जुड़ी यादें रूबरू करा रहा है। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में निहत्थे लोगों पर अंग्रेज सैनिकों ने अंधाधुंध गोली चलाई थी। इसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी। साथ ही, इसमें पहले विश्व युद्ध में जान गंवाने वाले भारतीय सैनिकों के बारे में जानकारी दी गई है। इसको हूबहू जलियांवाला बाग की तरह बनाया गया है। लोग इसकी दीवारों को छूकर उस मंजर को याद कर सकते हैं। केरल से आए पर्यटक दीपक आर्य बताते हैं कि बच्चों को यहां इतिहास दिखाने लाए हैं।
लाल किले से आई आवाज सहगल, ढिल्लों, शाह नवाज
नेताजी सुभाष चंद्र बोस और इंडियन नेशनल आर्मी के बारे में संग्रहालय में जानकारी मिलती है। कहा जाता है कि इसी इमारत में इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) के सैनिकों पर अंग्रेजों ने मुकदमा चलाया था। इसमें कर्नल प्रेम कुमार सहगल, लेफ्टिनेंट कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों व मेजर जनरल शाह नवाज खां शामिल थे। यह मुकदमा पांच नवंबर, 1945 को शुरू हुआ और तीन जनवरी, 1946 तक चला। ऐसे में इन दीवारों में इतिहास गूंज रहा है। यह संग्रहालय नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज उन प्रवासी भारतीयों को जिन्होंने आजाद हिंद फौज में शामिल होकर एक अविभाजित भारत के लिए बलिदान दिए। इसमें बोस के बचपन से लेकर और जब तक वो साइगौन में विमान पर चढ़े तब तक की जिंदगी और योगदान को दर्शाया है।
संग्रहालयों का मुख्य कार्य पारंपरिक रूप से वस्तुओं को इकट्ठा करना, संरक्षित करना, शोध करना और प्रदर्शित करना है। संग्रहालय का मकसद युवा पीढ़ी को देश की गौरवगाथा, ऐतिहासिक घटनाओं से रूबरू कराना है।